रविवार, 27 फ़रवरी 2011

शशि किरण का प्रणय गीत !




मैं शशि से बिखरी अंजोरी तम पे उजास बन छाती हूं! 
जो गीत शशि पर तुम लिखते मैं उन गीतों को गाती हूं...!!

तुम रात भरो अंधियारों से, मैं रश्मि,किरन, मैं अंजोरी
आईं हूं तुमको कुछ समझाने - देखूं क्या समझा पाती हूं !!


तुम मेरी मेरी करुणा क्या जानो, मेरी पीडा को पहचानों
मैं तुममे बसी सदा से हूं, मेरा होना तुम अनुमानो ....!!

जब गहन तिमिर छा जाता है, घुप्प अंधेरा छाता है-
जब जब उदास मन होता है -मै ही तो राह .सुझाती हूं !!


तुम मन का सागर साफ़ रखो, स्वच्छ नीर मेरी चाहत
किंचित भी मलिन नहीं होना मिल जाएगी मेरी आहट 

मैं स्वच्छ नीर में जब उतरूं, तुम शशि-बिम्ब बन आना
उस जल-क्रीड़ा मुझको तुम संग- मिल पाएगी अदभुत राहत .


अंजोरी....शशि किरण 

-- अनुभूति

4 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

sachmuch
bahut gahare bat

बेनामी ने कहा…

दिव्य-प्रणय -रस सिक्त शब्द का अविरल, अमल, प्रवाह..

आकर्षक

Udan Tashtari ने कहा…

गहन रचना.

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................