हर तरफ बिखरी हैं कालीघटाएं
झूम- झूम के कह रही हैं चलो आज तो कोई गीत गाये |
झूमता हैं मन इन घटाओ के साथ ,
सजता हैं तन इन फिजाओं के साथ,
क्या कहना चाहता हैं मेरे मन ,कुछ मुझको भी बता दे ?
क्यों जी उठी हूँ फिर आज मै इतना तो याद दिला दे ?
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
तेरी तलाश
निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................
-
ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है | ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए | तुम्...
-
मेरे मुरली मनोहर, इस वेदना में भी असीम शान्ति हैं , मन की अग्नि को शांत करता ये अश्रु जल हैं क्योकि इन सब की अंतरंगता में कान्हा तुम...