रविवार, 6 जून 2010

अचानक

समझी थी तुमको मै अपनी ही तरह
सीधा सादा  ,
पर तुम तो ज्ञान और अनुभव का सागर हो
और मै तो एक नन्ही से बूंद हूँ |

कितनी आसानी से कितने सरल शब्दों  से ,
अहसासों से
अपने आप मै ,
अपनी आत्मा मै तुम्हे बिना तुम्हारी विशालता जाने ही
अपने आप मै बसा लिया मेने |
आज जाना हैं रूप ,रंग ,अस्तित्व  तुम्हारा
सोच रही हूँ
केसे करू अपने आप से सामना ?
ये अनजाने मै ही क्या मुझको मिल गया ?
बहुत छोटी हूँ तुम्हारे इस अतः हीन ज्ञान के आगे मैं
नहीं समझ पा रही क्या करू ,क्या कहू अपने आप से ?

अब पर्दों से बहार आकर तुम ही मुझको जवाब दो ?
क्या हुआ हैं ये और क्यों ?

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................