बुधवार, 20 जनवरी 2010

सरस्वती और बसंती बाई

आज जनम दिन है मेरी दादी बंसतबाई का
हां ,और आज जनम दिन है सरस्वती का उस सरस्वती का जो कही पूरी नहीं हो सकी !
हर तरफ लोग पहन रहे बसंती रंग ,आज रंगा हर कोई इसी बसंत के रंग मै
फिर क्यों या याद रही है मुझको बसंती बाई{जीजा}
हां वो इतनी बुदी महिला ही थी जिसने स्वीकार किया था अपने पोते का ये प्रेम विवाह
हां बहुत अलग थी वो रुदिवादी विचारधाराओ से ,वो करवाना चाहती थी नोकरी मुझसे
बनवाना चाहती थी अपने पोते का घर ,आँगन
हां आज तुम्हारे ही रूप मै जनम हुआ था सरस्वती का |
हां ,सरस्वती कभी पूरी नहीं होती ,क्योकि वो इसीतरह जनम लेती रहती है कभी .माँ तो कभी दादी बनकर
तुम्हारे रूप मै ।
तुम युही अपने आशीर्वाद के साथ हम्रारे दिलो मै निवास करती रहोगी ,औरदेती रहोगी ज्ञान और सोभाग्य
आशीष सदा ,
हां तुम्हारा ही तो रूप है आज की सरस्वती
हां तुम अशिश्ती रहो युही सदा ,दादी बनकर तो कभी माँ बनकर



तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................