शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

तुम्हारा आलौकिक साथ !


स्नेह को कभी समझा ही नहीं जा सकता
बस उसकी उठती रश्मियों को 
आत्मा तक महसूस किया जा सकता हैं .

ये कैसा साथ है तुम्हारा !

जो हर पल, हर शब्द मेरा साथ देता भी है
 और किसी को महसूस नहीं होने देता हैं |

बावरी हूँ मैं तुम्हारी.

कितनी उमंगें उठा देते हैं तुमहारे ये शब्द ,

जीने की एक नयी अदा देते हैं ,
बेजान पड़ी इस जिन्दगीं में ,

ये ही मेरा सत्य हैं, आनंद है  |
तुम्हारा आलौकिक साथ !

-- अनुभूति 

7 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

खूबसूरत शब्द और उतने ही खूबसूरत भाव...अप्रतिम रचना...बधाई स्वीकारें...


नीरज

अनुभूति ने कहा…

धन्यवाद |

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

sundar bhav, seemit shabdon mai behtar

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

Unknown ने कहा…

waah !

ati sundar kaavya...........

kunwarji's ने कहा…

khubsurat bhaav...

kunwar ji,

रविंद्र "रवी" ने कहा…

एक अलौकिक रचना!

Creative Manch ने कहा…

कितनी उमंगें उठादेते हैं तुम्हारें ये शब्द ,
जीने की एक नयी अदा देते हैं बेजान पड़ी इस जिन्दगीं में ,

bhaavpoorn sundar rachna
aabhaar

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................