शनिवार, 10 जुलाई 2010

मेरे अस्तित्व का सपना |



रोज सिरहाने रख कर सोती हूँ
  एक सपना ,
हां , एक सपना.

 तुम्हारे  नन्हे , नन्हे हाथो का
  तुम्हारी नन्ही आँखों का
        और, तुम्हारे दुलार और  स्पर्श का .

 दुनिया में  सब से प्यारा और
  सब से मासूम एक सपना,

  तुम्हारे इस दुनिया में आने का सपना ,

      दुनिया में इससे ख़ूबसूरत  कोई सपना नहीं.

    इसीलिए पलकों को थामे इन्तजार कर रही हूँ
      तुम्हारे आने का  ,
   हां मेरे ,पुरे होने का , 

मेरे अस्तित्व का सपना |


-- अनुभूति 

4 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

शानदार पोस्ट

पवन धीमान ने कहा…

..बहुत अच्छी रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

neetu ने कहा…

मेरे अस्तित्व का सपना,पुरे होने का दुनिया मै इससे खुबसूरत कोई पल नहीं

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................