आत्मा अमिट हैं
जानती हूँ मै
इसीलिए बिना इकरार,बिना वादे के,
फिर भी मानती हूँ ,
तुमको तो इकरार ,
इनकार में बदलने का डर होता है .
और वादा फिर भी टूट जाने का डर
तुम में ही अपने को डुबोकर
पाया हैं मैंने अपने आप को.
कही कुछ खो जाने का डर नहीं
ना ही कुछ टूट जाने का,\
क्योकि, मैंने कुछ साथ बांधा ही नहीं,
मैंने तो डुबो दिया हैं अपने को ,
तुम्हारे अस्तित्व में ,
हां उस निराकार ब्रह में
यानी तुममे |
इसीलिए तुम तो सदा साथ हो,
सदा साथ थे और सदा रहोगे |
तो क्योकि मेरा तो अस्तित्व ही नहीं तुम्हारे बिना !
-- अनुभूति
2 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण!
बेहद गहन और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति।
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