जब भी कहीं सुनती हूँ
आज कल की दोस्ती को ,
एक टीस सी उठती है,
हर तरफ दोस्ती की आड़ में दगा होता हैं |
क्यों हर बार जिन्दगी की आड़ में ,
मौत का सौदा हो रहा होता है ?
किसे कहे?
किसे समझाएं ?
हर पल ,हर कदम
कहीं न कहीं
ये दगा हो रहा होता हैं|
क्यों हर बार
मासूम सी जिन्दगी की आड़ में ,
मौत का भला होता हैं ?
फरिश्तों पे भी विश्वास करने से डरता है,
एक मासूम इंसान का दिल .
क्योकि , कही न कही ,
दोस्त की आड़ में भी ,
कोई दुश्मन छिपा होता है |
-- अनुभूति
2 टिप्पणियां:
अच्छी अभिव्यक्ति ,,,,,आजकल kuchh लोग दोस्ती का नाम बदनाम किये हुए है ,,,परन्तु सच्चे दोस्त अभी भी बहुत मिलते है ,,,अच्छे दोस्तों का विचार आते ही एक बड़ी सूची जहन में आती है वही ,,,एक भी धोखेबाज दोस्त अगर ढूंढे तो ,,,मुश्किल होगी ,,,,,,जो भी हो आपकी रचना प्रशंशनीय है ,,बधाई स्वीकारे
मित्र धोखा नही देते है,दोस्त फ़िर भी धोखा दे देते हैं.कारण मित्र में मै त्रिय भाव होता है,दोस्त में दो उस्ताद मिले होते है.
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