रविवार, 25 जुलाई 2010

पथ -प्रदर्शक



पथ -प्रदर्शक ! 

मै नहीं जानती थी ,
सब कुछ इतने कम समय में बदल जाएगा |

एक अल्हड लड़की,
या, मै यूँ काहूँ कि बहती नदी ,
यूँ ठहराव को पा लेगी .

सुकून उसकी सांसो में  होगा ,
और जिंदगी उसकी राहों मै .

अगर तुम ना मिलते यूँ  मुझे
तो ऐसा नहीं होता .

इतना ही कहूँगी बस,
अपना स्नेह ,ज्ञान और आशीष,
मुझ पर यूँ ही बरसाते रहना ,

मेरे मालिक
मेरे पथ -प्रदर्शक

मै आप को गुरु नहीं कहती ,
क्योकि आप तो साथी भी हो जिन्दगी के
इतना कहूँगी बस 
गोविन्द का रास्ता दिखाने वाले भी आप ही हो ,

इसलिए
लाखो बार नमन करती है  मेरी आत्मा
आप को 

मेरे मालिक

मेरे पथ -प्रदर्शक.

-- अनुभूति 

7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

रोचक तथा प्रशंसनीय प्रस्तुति

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर विषय..अच्छी लगी रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

Anubhuti di kai dino sesister ke pas gya tha indore

isi karan blog par nahi aa saka

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सुन्दर ब्लाग उत्कृष्ट कविता बधाईयां

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..


http://charchamanch.blogspot.com/

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................