मंगलवार, 29 जून 2010

तुम्हारी ख़ामोशी  मेरे हर सवाल का जवाब हो ती हैं |
हमेशा मेरे हर सवाल के जवाब मै
तुम खामोश रहकर कह देते हो पगली क्या ढूंढ़ रही हैं ?
मै यही तेरे साथ .तेरे पास तो खड़ा हूँ |
हां तुम तो मेरे रोम रोम मै हो हर अंतस मै  मेरे राम राम |

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया!

रामेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

राम रमेति रमेति रमो रामेति मनोरमे,
सहस्त्र नाम ततुल्यं राम नाम वरानने॥

रामेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

गोस्वामी तुलसीदास जी के उद्गारित वचनों में "राम सकल नामन ते अधिका" के अनुसार संसार के सभी नामों से राम नाम का मूल्य अधिक ही मिलेगा। और जो इस राम नाम को अपना लेता है उसके लिये संसार में किसी भी क्षेत्र में चाहे वह आध्यात्मिक हो या भौतिक उजाला ही उजाला प्रकट हो जाता है। गोस्वामीजी ने अपने रामचरितमानस में कहा भी है-"राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वारा,तुलसी भीतर बाहिरेहु जो चाहेसि उजियार",मतलब राम नाम रूपी दीपक को जीभ पर धारण करने से अन्तरात्मा और भौतिक जगत में प्रकाश रूपी सुख की प्राप्ति होती है। राम का नाम घोर संकट में नाव का काम भी करता है और संकटों से उसी प्रकार दूर करता है जिस प्रकार से एक नाव गहरे दरिया से पार करती है-"राम रट राम रट राम रट बावरे,जीव गति घोर नीर निधि नाम निज नाव रे",राम का नाम जैसे ही अन्तर में व्यापत होता है और अपने प्रकाश का रूप प्रदान करता है जीव धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है। राम नाम को किसी भी अवस्था में किसी भी काल में स्मरण किया जा सकता है,-"भांय कुभांय अनख आलसहू,नाम जपत मंगल दिशि दसहू",अर्थात अच्छा लगे तो राम का नाम लो, नही अच्छा लगे तो राम का नाम लो,राम के नाम लेने में झल्लाहट आये तो राम का नाम लो,राम का नाम लेने में आलस्य आये तो राम का नाम लो,किसी भी प्रकार से राम का नाम लेने से इस भौतिक संसार की दसों दिशाओं में केवल मंगल ही मंगल प्राप्त होता है,और जब राम नाम की प्राप्ति हो जाती है तो - "मंगल भुवन अमंगल हारी,द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारी",अर्थात इस संसार में मंगल को प्रदान करने वाले और अमंगल रूपी कष्टों का निवारण करने वाले हे दसरथ के पुत्र राम! दवित होकर हमेशा हमेशा के लिये हमारे ह्रदय के मंदिर में विचरण करते रहो। "दीन दयाल बिरिदु सम्भारी,हरहु नाथ मम संकट भारी",हे दीनो पर दया करने वाले श्रीराम ! हे संसार के कष्टहरता प्रभु श्रीराम ! हमारे ऊपर इस भव के कितने ही कष्ट है उनका निवारण करिये,हे जगतपिता श्रीराम ! हम आपकी शरण में हैं। श्रीराम नाम की महिमा को सभी जानते हैं,-"सुआ पढावति गनिका तरि गयी तारे सदन कसाई",वह गणिका नाम की वैश्या जो आजीवन कुकर्मों में अपने शरीर को लगाये रही लेकिन अन्तरात्मा से राम नाम की महिमा केवल अपने पाले गये तोते को राम नाम सिखाने से ही उसे मोक्ष मिल गया,सदन नाम का कसाई जिसका काम केवल जीव हत्या ही था लेकिन कर्म को अन्तरात्मा से उसने नही जोडा और अपनी अन्तरात्मा में केवल राम का नाम ही रखा उसे भी मोक्ष मिल गया। वाल्मीकि जैसे दस्यु और हत्यारे को राम नाम का उल्टा जाप ही मोक्ष देने का कारक हो गया और वे जगत प्रसिद्ध हो गये,राम के नाम से ही शरीर के हर बाल का नाम रोम नाम रखा गया,नाम शब्द को बच्चे की तुतलाहट राम से जोडा गया, र अक्षर से शरीर और स्वर आ से संसार निवास तथा म अक्षर से मोक्ष को प्रदान करने वाला बताया गया,इसी स्वर आ में नाम की महिमा को और शक्ति को प्रवेश दिया गया,इसी सीताराम शब्द में आदि शक्ति को गूढ बनाकर बैठाया गया, और श्रीताराम शब्द को सीताराम मुखरित किया गया,वाह कितनी प्यारी महिमा है राम के नाम की,मन में लाते ही श्रीशक्ति का आवेशात्मक प्रवेश हो जाता है शरीर के अन्दर,उन लोगों की बात ही कुछ और है जो हमेशा से राम के नाम को अपने ह्रदय में लेकर चल रहे है,इस प्रकार के व्यक्तियों को अगर कोई वासनात्मक रूप में निहारता भी है तो वह या तो अन्धा है या फ़िर केवल नरपशु के रूप में इस धरती पर -"ते मृत्यु लोके भुवि भार भूता,मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति"।

रामेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

राम के नाम मे और अहम में दुश्मनी है इस अहम के बारे में जानने के लिये यह ब्लाग आप पढ सकते है- http://jyotishmandir.blogspot.com/

रामेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

राम की शक्ति ही "श्री" शक्ति है,इस शक्ति के पूर्ण विवरण और विवेचना के लिये पढें- http://jaipurinida.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

kunwarji's ने कहा…

yaha aana safal huaa....

kunwar ji,

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................