सोमवार, 5 अप्रैल 2010

सोचती हूँ कब तक जीती ही रहेगी  दुसरो के लिए औरत ,
कब अंत होगा उसके समर्पण का ?
कब लह लहा  उठंगे उसके सपने, आँखों  से बाहर आकर ?
अपनी आँखों को बंद किये क्यों इन्तजार करती हूँ सपनो के लह लहाने का ?
और सोचती हूँ
 इसी सब्र और इन्तजार का दुसरा नाम ईश्वर ने औरत रखा होगा 
हां ,बचपन से उम्र के आंखरी पल तक वो सपनो  के साथ ही दम तोड़ देती है ,
क्यों ?
हर बार ये सवाल मन को भेद जाता हैं ?
इतनी वेदनाये क्यों उसी के जीवन का हिस्सा  है?
इन ही सवालों से द्वंदों से लड़ते हुए आँख लग जाती है और फिर मै देखने लगती हूँ कभी ना पुरे होने वाला एक सपना |

एक आदत सी हो गयी है अपने सपनो से लड़ने की ,
हर बार टूटने के लिए ही मेरे सपने बने होते है
जानती हूँ ,पर फिर भी जीने की एक आस संजो लेती हूँ |
सोचरही हूँ कितना मुश्किल हो गया है न जीना
फिर भी इन के बहाने एक रास्ता निकाल लेती हूँ |
हर बार कोई न कोई कदमो मे आकर मांग ही लेता है कुर्बानी
मुझसे अपने सपनो की ,
माँ ,बेटी ,बहु या पत्नी बनकर भूलना ही होता होता है अपने सपनो को
कब तक चलती ही रहेगी ये अग्नि परिक्षाए |



















3 टिप्‍पणियां:

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

अच्छा प्रयास.....
बस थोड़ा मात्राओं का ध्यान रखें

रामेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

मन को छूकर भागजाने वाली कविता ":)

Unknown ने कहा…

अगर हम धर्म ग्रंथो का अध्यन करे तो हम पाएंगे कि नारी को जीव नहीं कहा गया उसको प्रकृति कहा गया है, प्रकृति अर्थात जन्म देने की छमता है जिसमे कहा जायेगा की पुरुष के बिना , नहीं नारी जीवन देती है , एक जीव को जन्म देने के लिए , प्रसव तक कितने कष्ट , परन्तु नारी ने अगर कभी भी ये इच्छा रक्खी होती की समाज में उसका बर्चस्व रहे तो जरुर होती ,ऐसा मरे व्यक्तिगत सोचना है की जिस की कोख में भविष्य पल रहा है जो भविष्य की निर्मात्री है अगर उसने कल के भविष्य को ऐसे संस्कार दिए होते की उसका आधिपत्य कायम हो तो जरुर ऐसा हुआ होता ,पर नारी का स्वाभाव ही समर्पण रहा है,पर आज नारी को सम्मान के लिए सार उठाना ही चाहिए, जो इस समाज को जन्म देने वाली है उसको अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पद रहा है , ये समाज के लिए शर्म के विषय है, नारी सम्माननीय है चाहे वो किसी भी रूप में हो .................

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................