श्रद्धा से पूजे कोई" पत्थर" तो वो भी बन जाए खुदा ,
हम तो पूजे पत्थर ,वो पत्थर जो बन बैठा है मसीहा
कहते रहे लोग विशवास नहीं करना
और हम लगाये बैठे है आस एक पत्थर से
ये विशवास ही तो है मेरा राम के पूज रहा मन एक पत्थर
जानता है मन एक दिन तो पत्थर भी जाग उठेगा मेरी करुणपुकार से,
और भर देगा मेरा आँचल अपने दुलार से ,
हां सब कुछ श्रद्धा और विशवास का ही तो खेल है ये
कि मान बैठा है एक पत्थर को मसीहा
हां वो पत्थर का मसीहा कभी तो देखेगा
,प्यार भरी निगाहों से मेरे खाली आँचल को भी ,
और देगा जीवन को नया नाम ,और नया रूप
हां कभी तो वो पत्थर भी बन जाएगा मेरे लिए" पत्थर का मसीहा "|
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