सोमवार, 18 जनवरी 2010

जीवन और तुम

तुम और ये जीवन दोनों एक दुसरे के पूरक हैं
तुम बिन जीवन नहीं ,तुम बिन मै नहीं
मेने पाया है तुममे वो पूरा इंसान जो मुझको कही पति नहीं नजर आया ,
मेरे शब्दों को तुमने ही दिया है साकार रूप ,
और जीवन जीवन को दिया है सार्थकता का साथ
हां तुम ,वो धीरज ही तो हो ,जिसके बिना जीवन का कोई मोल नहीं
कभी कह नहीं पाती वो हजारो बाते तुमको जो पग पग देती है मेरा साथ
और तुमको समझा नहीं पाती ,अपनी घुटन
मुझको तलाश है आध्यात्म की ।
और तुम्हारे स्नेह ने बना रखा है मुझको अपने काँधे की चिड़िया
तुमने ही दिया है जीवन को अनंत सोच का आकाश
फिर क्यों अपने काँधे पे ही बिठाये रखना चाहते हो अपनी इस चिड़िया को ?
तीसरी फ़ैल कहते कहते ,तुमने मुझको ला खड़ा किया है जीवनको पी एच डी के सामने
क्यों ,डरता है तुम्हारा असीम स्नेह की कही धारण ना करलू कोई भगवा ?
नहीं ,मेने तुम्हारे रंग का भगवा धारण किया है और अब मै शायद इस जन्म मै और किसी रंग मै ना रंग सकू|

कैसे समझाऊ तुमको ?
जीवन की ये धारा अब जिस और मुड़ चली है वो अब किसी बंधन मै बंधा नहीं है|
वो मुक्त है ,अनंत आकाश का राहू है ,जो पाना नहीं,देना चाहता हैं |
अपना जीवन समर्पित करना चाहता है दुखियों की सेवा के नाम

क्यों समझा नहीं पारही ये घुटन तुमको ?
शायद इसीलिए की तुम और जीवन एक दुसरे के पूरक हो !


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