शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

तुम्हारा आलौकिक साथ !


स्नेह को कभी समझा ही नहीं जा सकता
बस उसकी उठती रश्मियों को 
आत्मा तक महसूस किया जा सकता हैं .

ये कैसा साथ है तुम्हारा !

जो हर पल, हर शब्द मेरा साथ देता भी है
 और किसी को महसूस नहीं होने देता हैं |

बावरी हूँ मैं तुम्हारी.

कितनी उमंगें उठा देते हैं तुमहारे ये शब्द ,

जीने की एक नयी अदा देते हैं ,
बेजान पड़ी इस जिन्दगीं में ,

ये ही मेरा सत्य हैं, आनंद है  |
तुम्हारा आलौकिक साथ !

-- अनुभूति 

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

तुम्हारा स्नेह -पाश



तुम्हारा हर शब्द मेरी आत्मा तक पहुँचता है . 
हर शब्द मुझे झकोर -झकोर के कहता है  कि

मैं तुम्हारे लिए ही मन के आंगन से निकला हूँ .
हर बार जवाब मिलता है  मुझे,
मेरा तुम्हारे शब्दों से ,

तुम्हारी वेदना,
और सब कुछ कह के भी चुप रह जाने की आदत से 

मैं  तुम्हारे इसी विश्वास के साथ बंधी हूँ 
और सदा बंधी रहूंगी|

तुम्हारे इस स्नेह पाश में सदा बंधी रहूंगी |

-- अनुभूति 

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

हिना


ये कविता किसी बहुत बड़े दार्शनिक या विद्वान के लिए नही है |
ये कविता है घर-घर जाकर काम करने वाली एक साधरण सी लड़की हिना के लिए   |


तुम्हे सलाम करती हूँ हिना 
सलाम करती हूँ .

जिन्दगी की मुश्किलों से लड़ने की
तुम्हारी ताकत को . 

तुम मेरे लिए बहुत ख़ास हो 
तुम्हारी वे मासूम सी बातें 
और, 
अपने परिवार के पांच लोगो को पालने का बोझ ,
और,
उसमे दम भरती तुम्हारी सपने देखने की चाहतें .

कितने ख़ूबसूरत,सरल और सच्चे सपने हैं तुम्हारे .

वे कभी कानो के बूंदों की फरमाइश
और उन्हें पहनकर बहुत खुश होना,
और अपने को एक टक सा आईने में निहारना 

कितना सुन्दर और जीवंत होता है 
तुम्हारा हर एक सपना 

तो, कभी मुझसे दाल -चावल खाने की फरमाइश करना .
सोचती हूँ ,
तुमसे सीखना चाहिए उन लोगो को ,
जो हार कर घर बैठ जाते हैं ,
और अपने सपनो को आँखों में ही लिए,
 दम तोड़ देते हैं .

और किस्मत का दोष निकालकर रोते हैं |

अहले सुबह ,
जब दुनिया बिस्तर में ही होती है
 एक मासूम सी 

पद्रह साल की लड़की ,
सुबह छ बजे दरवाजा खटखटा रही होती है  |

सुबह के दस बजे मोहल्ले का काम निबटा कर .
तुम भूखे पेट ही चल देती हो स्कुल ,
अपने पढने की चाहतो को मन में समेटे ,

और , शाम को पूछने पर कह दिया करती है -
"दीदी भूख ही नहीं लगती "

मुझे अन्दर तक डरा देते हैं तुम्हारे ये शब्द !
हर रविवार को चाँद निकलता है,
  दिन में ,

सारी मुश्किलें , सारा दर्द , 
सब कुछ रविवार को कहीं नहीं होता 

क्योकि हर रविवार को 
 चाँद ,
हिना के चेहरे पर चमक रहा होता है |

उस चाँद के आगे हम दोनों भूल जाते हैं और 
उसके सपनो के सौदागर की बातो में कही खो जाते हैं |

कितनी आरजू हैं उसकी की,
 वो भी दुल्हन बने 
सोचती हूँ ,
कुछ सुलझाने की कोशिश करती हूँ .

क्या हिना अपने सारे लोगो को छोड़ कर 
कभी अपने हाथो में रचा पाएगी हिना ?

हर बार
ये पूछने पर कि तेरे बाद,
इन भाई -बहनों का ,
और बीमार माँ का क्या होगा ?

हिना कुछ नहीं कहती ,
खो जाती हैं 
अपनी कडाही और चाय की भगोनी में ,

और, में खो जाती हूँ
इसी सवाल में कि कब रचेगी 
हिना के हाथो में भी हिना ?

सलाम करती हूँ तुम्हे मै हिना ,

क्योकि ये समाज बड़ी बड़ी बाते ही करता रहेगा ,
तुम्हे ये नहीं दे सकेगा अपने सपनो का सौदागर .

तुम्हारा नाम नहीं होगा किसी पुरस्कार या सम्मान की सूची  में ,
इसी लिए कोशिश करुँगी की मिलवा सकूँ 
तुम्हे अपने सपनो के सौदागर से.
 
में कामयाब रहूँ दोस्तों,
 यही दुआ करना |

हां , 

हिना ,
 सलाम करती हूँ तुम्हे...

-- अनुभूति 

बुधवार, 28 जुलाई 2010

दोस्ती



जब भी कहीं सुनती हूँ 
आज कल की दोस्ती को ,

एक टीस सी उठती है,
हर तरफ दोस्ती की आड़ में दगा होता हैं | 

क्यों हर बार जिन्दगी की आड़ में ,
मौत का सौदा हो रहा होता है ?

किसे कहे?
किसे समझाएं ?

हर पल ,हर कदम 
कहीं न कहीं 
ये दगा हो रहा होता हैं|

क्यों हर बार 
मासूम सी जिन्दगी की आड़ में ,
मौत का भला होता हैं ?

फरिश्तों पे भी विश्वास करने से डरता है,
एक मासूम इंसान का दिल .


क्योकि , कही न कही ,

दोस्त की आड़ में भी ,
कोई दुश्मन छिपा होता है |


-- अनुभूति 

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

जिन्दगी

एक कविता मेरे पिता आदरणीय श्री रतन चौहान के कविता संग्रह
 '' टहनियों से झांकती किरणें ''

 से 

============

हवा में लिपटा धुंआ
हांडी में पकते टमाटर की खुशबू ,
और कुछ बारिश ,
बारिश का भीगापन

बाहर आई काली मिटटी को जी छूना चाहता हैं
नए मकान  की नींव खुद रही है.

लोग ताप रहे हैं,
और कांच के टुकड़े में 
अक्स देखती लड़कियां 
कंघी कर रही हैं

काम पर जाने से पहले
टहनियों से झाँक रही हैं किरणे.

कही ढोल बज रहा है
उठ रहा है स्वर,
गूंजता हुआ,

-- अनुभूति  

द्वारा 

 सादर साधिकार प्रस्तुत .

रविवार, 25 जुलाई 2010

पथ -प्रदर्शक



पथ -प्रदर्शक ! 

मै नहीं जानती थी ,
सब कुछ इतने कम समय में बदल जाएगा |

एक अल्हड लड़की,
या, मै यूँ काहूँ कि बहती नदी ,
यूँ ठहराव को पा लेगी .

सुकून उसकी सांसो में  होगा ,
और जिंदगी उसकी राहों मै .

अगर तुम ना मिलते यूँ  मुझे
तो ऐसा नहीं होता .

इतना ही कहूँगी बस,
अपना स्नेह ,ज्ञान और आशीष,
मुझ पर यूँ ही बरसाते रहना ,

मेरे मालिक
मेरे पथ -प्रदर्शक

मै आप को गुरु नहीं कहती ,
क्योकि आप तो साथी भी हो जिन्दगी के
इतना कहूँगी बस 
गोविन्द का रास्ता दिखाने वाले भी आप ही हो ,

इसलिए
लाखो बार नमन करती है  मेरी आत्मा
आप को 

मेरे मालिक

मेरे पथ -प्रदर्शक.

-- अनुभूति 

शनिवार, 24 जुलाई 2010

तुम्हारे वादे ,

तुम्हारे वादे , 

एक आस जिन्दगी की ,और
तुम्हारे वादे ,

जिन्दगी का फलसफा यही है,
तुम्हारे वादे .

तुम्हारे स्वप्न सुकून देते हैं
 और , तुम्हारा साथ वेदना .

एक डर , 
हाँ एक डर 
मुझे हर पल सताता हैं ,
कि कही तुम, मुझसे बिछड़ ना जाओ |

तुम्हारे इन वादों पे यकीन करना,
तो जिन्दगी चाहती हैं .

पर हर आने वाले पल की आहट
फिर भी मुझे डराती हैं |

तुम्हारी साँसे मुझे 
हर पल विश्वास दिलाती हैं, 
फिर भी हमनशीं  मेरे ,
ये दुनिया मुझे पल -पल डरती हैं|

क्या सत्य हैं ? 
तुम्हारी सांसे या 
तुम्हारे वादे ?

इसी  ख़ुशी और गम 
में  जिन्दगी बिताती हूँ |

हाँ 
फिर भी एक आस जिन्दगी की और तुम्हारे वादे !


-- अनुभूति 

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

जीवन -संगीत




एक झोंका हवा का और ,
और ,तुम्हारी आहटें .

एक पल और ,
और , तुम्हारी चाहतें .

तुम्हारी आहटें ,
और 
जिन्दगी के गीत .
अब तो दोनों बन गए हैं 
मन -मीत .

मेरी खनकती पायल ,
और 
तुम्हारे गीत ,
यही तो है  मेरा 
जीवन -संगीत.

-- अनुभूति 

बुधवार, 21 जुलाई 2010

प्रेम


प्रेम नहीं माँगता किसी से ,
बदले में कोई प्रेम 
प्रेम नहीं माँगता कोई सम्बन्ध
प्रेम तो समर्पण हैं ,
जो सिर्फ देना जानता.

किसी स्वीकारोक्ति की कोई जरुरत  नहीं ,
इस असीम अनुराग में ,
तुम कहो ना कहो ,
पर , तुम यही तो धड़क रहे मुझमे सदा ,

  तुम तो निराकार
  न  कभी तुम मरे ना कभी तुम मरोगे,

 क्योकि तुम तो जीवित हो मुझमे सदा |


-- अनुभूति 

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

आँख -मिचोली


पलकों पे  सपने सजाता हैं जीवन ,
तुम्हारे आने से गाता है जीवन .

 खामोशियों से जब तुम मेरे करीब आक
 निकल जाते हो , 
मै तुम्हारी उसी खुशबू  में महक जाती हूँ .

 किसी पौधे  में पानी डालते -डालते 
जब गुनगुना रहे होते हो ,
 वहीं बहती  हवा बनकर झूम रही होती हूँ मै,

और तुम जब महसूस करने लगते हो मुझे,
एक लहर बन कर उड़ जाती हूँ मै |


-- अनुभूति 
                          

शनिवार, 10 जुलाई 2010

मेरे अस्तित्व का सपना |



रोज सिरहाने रख कर सोती हूँ
  एक सपना ,
हां , एक सपना.

 तुम्हारे  नन्हे , नन्हे हाथो का
  तुम्हारी नन्ही आँखों का
        और, तुम्हारे दुलार और  स्पर्श का .

 दुनिया में  सब से प्यारा और
  सब से मासूम एक सपना,

  तुम्हारे इस दुनिया में आने का सपना ,

      दुनिया में इससे ख़ूबसूरत  कोई सपना नहीं.

    इसीलिए पलकों को थामे इन्तजार कर रही हूँ
      तुम्हारे आने का  ,
   हां मेरे ,पुरे होने का , 

मेरे अस्तित्व का सपना |


-- अनुभूति 

अस्तित्व




आत्मा अमिट हैं 
जानती हूँ मै
इसीलिए बिना इकरार,बिना वादे के,
      फिर भी मानती हूँ ,

 तुमको तो इकरार ,
इनकार में  बदलने का डर होता है .

और वादा फिर भी टूट जाने का डर
    तुम में ही अपने को डुबोकर 
पाया हैं  मैंने अपने आप को.

 कही कुछ खो जाने का  डर नहीं
 ना ही कुछ टूट जाने का,\
 क्योकि, मैंने  कुछ साथ बांधा ही  नहीं,

मैंने तो डुबो दिया हैं अपने को ,
तुम्हारे अस्तित्व में ,
  हां उस निराकार ब्रह में
  यानी तुममे |
  इसीलिए तुम तो सदा साथ हो,

 सदा साथ थे और सदा रहोगे |
   तो क्योकि मेरा तो अस्तित्व ही नहीं तुम्हारे बिना !

-- अनुभूति 

ख़ामोशी

आप की  ख़ामोशी भी ,
   मेरी जिन्दगी की एक अदा हैं
                मुझे आप कहे ना कहे ,
                          पर यूँही ख़ामोशी से मेरे साथ चलते रहना भी आप की  वफ़ा हैं |
             यूँही तडपना और अपनी ही  जिन्दगी से
                                   अपनी शिकायत करना ,
                 ये कुछ ना कह कर भी मेरे लिए चुनी गयीं एक  सजा हैं |
                                    आप की ख़ामोशी से शिकायते नहीं ,
                                              पर अपनी ही जिन्दगी से यूँही शिकवा करना ,
                                                         मेरी ही आँखों को आंसुओ  से नम करना हैं | |

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

मन के तार

मन के तार उसी से जुड़ते हैं ,
                            जो जाने मन
        तन की परिभाषा से,
                         कोसो दूर हैं मन
              ये जो जाने ,
                         वो ही जाने  मन को |
               मन दर्पण हो तो जाने मन ,
                                                      मन को
              क्या कहू जब सब कुछ बिन
                          बोले ही समझ लेते हो इस मन को !

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

हम कहे ना कहे विशवास और आत्मा से सदा साथ ही हैं क्यों समझते हो दूर हूँ ?नहीं करीब ही हूँ सदा जीवन की अंतिम सांस तक ,हां साँसों का ऐतबार यूँ ही टूट जाएगा क्या ?
तुम्हारे सवालों का जवाब मै मेरी खमोशी तुम्हारे साथ मेरे होने का एहसास ही तो हैं |

बुधवार, 30 जून 2010

खुदाई

जिनके पास चाहत  होती हैं 
,जिन्दगी भी उन्ही के पास होती हैं |
कोन कहता हैं, टूटा हुआ आइना फिर से जुड़ नहीं सकता!
उसे जोड़ने की खुदाई तो बस प्यार करने वालो के पास होती हैं |
       रूह मै उतर कर रूह को जान लेने की बात ही तो सच्ची  खुदाई होती हैं ,
                   कोई समझे ना समझे ,वो समझ गया ये ही तो ये ही तो उसकी रहनुमाई होती हैं |
      जिसने समझा चाहत को ,उसी ने जाना खुदा को ,
          केसे बातये हम की किसी को चाहना ही सबसे बड़ी खुदाई हैं |

मंगलवार, 29 जून 2010

तुम्हारी ख़ामोशी  मेरे हर सवाल का जवाब हो ती हैं |
हमेशा मेरे हर सवाल के जवाब मै
तुम खामोश रहकर कह देते हो पगली क्या ढूंढ़ रही हैं ?
मै यही तेरे साथ .तेरे पास तो खड़ा हूँ |
हां तुम तो मेरे रोम रोम मै हो हर अंतस मै  मेरे राम राम |

शुक्रवार, 18 जून 2010

माँ |

क्या होती है माँ ?
नहीं पता मुझको ,क्योकि मै बन नहीं सकी कभी माँ
हां अपनी माँ के साकार रूप को देखा है मेने ,
इसीलिए ही शायद मन अपने स्त्री होने के अपने अस्तित्व को खोज रहा है
मुझको याद है उसका अलसुबह उठ जाना ,हमारे लिए तैयारी करना
कितना प्यार गुंधा होता था ,उन मैथी के पराठो मै ?
हां ,अब मुझको पल पल याद आता है जब मै नहीं बन सकी हु एक माँ
माँ के सपनो के आँगन से तो मै निकल आई हु यथार्थ  जीवन मै
और हां बन नहीं सकी हु माँ
हां माँ कभी मै रो नहीं सकी तुम्हारी गोद मै सर रखे ,किस्मत से शिकायत किये की मै नहीं बन सकी हु माँ
जानती हु मै जब तुम देखती हो मुझको किसी खिलोने से खेलते हुए तो क्या सोच रही होती हो ?
और होले से एक आवाज लगाकर कहती हो ,अरे क्या बचपना है ये !
मै जानती हु ,तुम कभी मेरे असीम दर्द का कोई अहसास मुझको नहीं कराना चाहती |
इसीलिए मुझको एक हलकी सी आह्ट से ही खीच लेती हो ,अपने आँचल मै
सच कहू तुमको पाकर सारे दर्द भूल जाती हु और बन जाना चाहती हु एक बार फिर वही छोटी सी तुम्हारी बेटी
हां तुम्हारा ह्रदय बड़ा विशाल है की तुम हंस कर छिपा देती हो या कभी डांट कर
मुझको पता है एक किसान तभी खुश होता है जब उसकी बचाई बिजवारी भी उसको भरपुर फसल देती है |
पत्थर पूजते पूजते भी अब हार गयी हु माँ ,
इसीलिए भाग जाना चाहती हु ,इस दुनिया से दूर छिप जाना चाहती हूँ तुम्हारे आँचल मै
हां इसीलिए की कभी ना बन सकुगी माँ |


शनिवार, 12 जून 2010

आया सावन झूम के

           हर तरफ बिखरी हैं कालीघटाएं 
                     झूम- झूम के कह रही हैं चलो आज तो कोई गीत गाये |
                                झूमता हैं मन इन घटाओ के साथ ,       
                                       सजता हैं तन इन फिजाओं के साथ,
                                        क्या कहना चाहता हैं मेरे मन ,कुछ मुझको भी बता दे ?
                                             क्यों जी उठी हूँ फिर आज मै इतना तो याद दिला दे ?
                         

गुरुवार, 10 जून 2010

सांसो का एतबार

मेरे हर सवाल का जवाब हो तुम
मेरे हर ख्याल की ताबीर हो तुम
  मेरे हर शब्द का अहसास हो तुम   
 हां कहो ,ना कहो मेरा विश्वास हो तुम
                        पूछोगे नहीं ,बिना देखे ,बिना मिले ,बिना बोले
                       इन साँसों मै कितना विशवास है
                       जितना तुम्हारी साँसों को तुम्हारी आत्मा से हैं |
                       मै जानती हूँ तुम कहोगे नहीं कभी इन पर्दों से बाहर,
                                            फिर भी बिन कहे तुम्हारी उलझनों को मै समझती हूँ |
                                              जानती हूँ सागर कभी अपनी मर्यादा नहीं तोड़ता .
                                        
लेकिन ये भी जानती हूँ जिस दिन तोड़ता हैं अपने साथ तूफ़ान लाता हैं |
                                            मै खमोशी से तुम्हारे अन्दर चल  रहे हर तूफ़ान को महसूस करती हूँ        
 फर्क  इतना है हैं तुम      सामनेआकर नहीं कहते और मै सरलता से हर अहसास को कह जाती हूँ |

सोमवार, 7 जून 2010

नकाब

एक नकाब हर चहरे पे होता हैं
इसीलिए वो एक चेहरा दुनिया से भी छिपा होता हैं |

जिन चेहरों पे नकाब नहीं होता हैं
वो चेहरा खुदा के बहुत करीब होता है ,
क्योकि सत्य  को उसे खोजना नहीं होता ,
सत्य तो सदा उसके साथ होता हैं |

जिन चेहरों पे नकाब होता है वास्तव ,
मै वो ही दुनिया मै खराब होता हैं |

बड़ी बड़ी बातो से बड़ा नहीं होता इंसान ,
उसको क्या पता झुकने से ही बड़ा बनता हैं इंसान |

विशवास की धरा पर खिल रहा फुल ही पेड़ बन पता हैं ,               
नहीं तो वो भी बहार बन कर उड़ जाता है |

इन सब के आगे हर सवाल अधूरा रह जाता हैं  
  क्योकि हर चेहरे पे नकाब चदा नजर आता हैं |

रविवार, 6 जून 2010

अचानक

समझी थी तुमको मै अपनी ही तरह
सीधा सादा  ,
पर तुम तो ज्ञान और अनुभव का सागर हो
और मै तो एक नन्ही से बूंद हूँ |

कितनी आसानी से कितने सरल शब्दों  से ,
अहसासों से
अपने आप मै ,
अपनी आत्मा मै तुम्हे बिना तुम्हारी विशालता जाने ही
अपने आप मै बसा लिया मेने |
आज जाना हैं रूप ,रंग ,अस्तित्व  तुम्हारा
सोच रही हूँ
केसे करू अपने आप से सामना ?
ये अनजाने मै ही क्या मुझको मिल गया ?
बहुत छोटी हूँ तुम्हारे इस अतः हीन ज्ञान के आगे मैं
नहीं समझ पा रही क्या करू ,क्या कहू अपने आप से ?

अब पर्दों से बहार आकर तुम ही मुझको जवाब दो ?
क्या हुआ हैं ये और क्यों ?

शुक्रवार, 4 जून 2010

होगा अभिमन्यु केसे अब ?

लगातार कुछ दिनों से जो पत्रिकाए देखने मै आरही हैं वो अंतर  जातीय विवाह की हैं या घर से भाग कर शादी कर लेने वाले लोगो की और बाद मै तलाक तक की स्थितियों तक पहुँच जाने वाले लोगो की हैं |
या ऐसे लोगो की हैं जो अपने बच्चो से परेशान  हैं खास कर पहली संतान से सम्बंधित |अपनेएक रिसर्च के दोरान मेने पाया हैं की वो शादियाँ  जो भाग कर की गयी हैं या ऐसा विवाह जिसमे महिला पक्ष की कोई मर्जी नहीं पूछी गयी हैं उनकी पहली संतान जो शादी के पहले से दुसरे साल मै हो गयी बड़ी परेशान करती हैं ,कहना नहीं मानती और बात बात पर अपने आप को नुक्सान पहुचाने की बात करती हैं |
 उनकेमाता पिता उनके लिए बड़े परेशान होकर आते हैं पूछते हैं कोई मदत कीजिये |
क्या कहू उनको जिन्होंने जीवन के शादी जेसे विषय को खेल समझा हैं या समझ रहे है अपने ही बोये बीजो को अब सहन नहीं कर पा रहे ,खेर उस समय तो हल कर विदा लेना ही उचित समझती हूँ |पर सोच ती हूँ इसके पीछे छिपे एक साधरण से ज्ञान को लोग क्यों नहीं समझ सकते और उस देश के लोग जो ये जानते हैं की अभिमन्यु जेसे योद्धा ने अपनी माता के गर्भ मै ज्ञान प्राप्त किया था |लोगो के आधुनिकता की और बड़ते कदमो ने आने वाली नस्लों को खुद अपने ही हाथो बिगाड़ दिया हैं कभी कभी बड़ा दुःख होता हैं की हम किस और बड़ रहे है किस ज्ञान को खोज रहे है ?जो हमारे पास हैं उसका हमारे लिए कोई मतलब नहीं हैं ?यही तो दुर्भाग्य हैं |
चलिए अब अपने विषय पर आती हूँ सोच सकते हैं क्या कारन हैं बिगड़ी संतान होने का ?
नहीं ना कुछ सोच लेते हैं पर दूर तक अपना नहीं पाते सही रास्ता | जब ऐसा विवाह होता हैं जो प्रेम विवाह है और जो दो परिवारों की मर्जी के खिलाफ हुआ हैं उसमे शुरू का समय तो याने कुछ महीने जब तक ख़ास कर लक्ष्मी की कृपा बनी होती हैं सब ठीक होता हैं इन ही छ माहो मै स्त्री गर्भ धारण कर लेती हैं बड़ा कोई पास नहीं होता |क्या खाए ?क्या पहने ?क्या पड़े ?
केसा आचरण करे तब कोई पास नहीं होता और बेलगाम जीवन केसा होता हहिं उसकी व्याख्या करने की कोई आवश्यकता नहीं | वो सारे प्रभाव गर्भ मै पल रहे बच्चे पर पड़ता हैं क्योकि वो सबसे अलग रहकर माँ से जुड़ता है इसी लिए आगे वो बच्चा परिवार के लोगो को अपना बनकर कभी नहीं अपना सकता |
चलिए शादी के कुछ समय बाद परिवार को ये पता लगता हैं तो सज्जन परिवार के लोग अपनी बहु को अपने साथ घर ले आते हैं |लेकिन यंहा अब बंदिशों के कारण विवाद परिवार मै ना हो पर, पति और पत्नी के बिच अक्सर रातो को होते ही रहते हैं ,इन विवादों का जहर और माँ का रोना बच्चे के  लिए जहर का काम करते हैं |
ये जहर धीरे धीरे बढता जता हैं बच्चे के बड़े होने के साथ साथ विकसित भी और वही परेशानियां आने लगती हैं जो लोग करते हैं ख़ास कर अपने को नुक्सान पहुचाने की , अपनी मर्जी से काम करने की |
वही उगता हैं जो धरती के गर्भ मै किसान बोता है और जो सीचा जाता हैं |
इसिलए कल को सुधारना हैं तो हम आज को सुधारे |

 इसीलिए मै गुजारिश करुँगी उन महिलाओं से जो  गर्भवती हैं और अपने सपनो को सच करना चाहती हैं अपने मै कुछ विशेष गुणों का समावेश इन ख़ास नो महीनो के दोरान करे |
  1.   अपने आप को और अपने रिश्तो को मधुरबनाने  की कोशिश करे |
  2.  आप जिस भी धरम के उपासक हो अपना धरम ग्रन्थ पड़े |
  3.   अपने घर के बड़ो का रोज आशीर्वाद ले |
  4.  सुबह शाम अपने ईशवर के नियमित जो भी हो सके पूजा पाठ करे |
  5.  अगर आप हिन्दू हैं तो ख़ास कर रामायण का पाठ जरुर नियमित करे |
  6.  ऐसे लोग जिनको पूरा आराम करने की सलाह दी गयी हैं वो अपने बिस्तर पर ही लेटे लेटे अच्छी पुस्तके पड़े ,या ईशवर का नाम लेते  रहे |
  7.   टेलीविजन के सीरियलों से सख्त परहेज करे |
  8. इसकी बदले आप कुछ अच्छे स्त्रोत मंत्रो को सुने या जाप करे |
  9.  ईशवर कानाम लेकर ग्यारह बार सुबह और शाम श्वास लेते और छोड़ते रहे |
  10.  पतियों को चाहिए की इस समय अपना पूरा ध्यान और स्नेह और साथ पत्नी को दे |
  11.   अपने सोने का कमरा साफ़ रखे |
  12.     अपने कमरे मै सिरहाने पानी जरुर रखे |
  13. नियमित सूर्य देवता को जल दे |
  14. गर्भ मै बच्चो पर मंत्रो का विशेष प्रभाव पड़ता हैं हैं इसलिए अपने ग्रहों के अनुसार मंत्रो का जाप या माँ भगवती का स्मरण करते रहे |
  15. एक साधरण सा मन्त्र हैं " सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तु ते | का जाप करते रहे |
  16. किसी भी प्रकार के विवादों से बचे |
  17.  कमरे मै अपने इष्ट की तस्वीर जरुर रखे और नियमित इनको प्रणाम करे |
  18. और अंतिम सभी से बड़े स्नेह के साथ रहे उची आवाज मै ना बोले ,बड़ो की बातो को मानने का प्रयास करे |
  19. अब आप अगर इन सब बातो को ध्यान रखे तो निश्चित ही आप एक आज्ञाकारी संतान के माता -पिता होंगे |

शनिवार, 29 मई 2010

अहसास और तुम

बिन कहे भी सब कुछ कह जाते हो तुम
मेरे आस पास आकर हर अहसास को केसे छु जाते हो तुम |

नहीं मालूम तुमसे रिश्ता क्या हैं मेरा ?
नीत अपने शब्दों से क्यों ?जीने को मजबूर कराते हो तुम |

तुम जानो ,मै जानू हर शब्द के अहसास को
फिर क्यों शब्दों मै उलझाकर रुलाते हो तुम ?

 तुम जानो पल पल तुम्हारे शब्दों के अहसासों को समझू मै
क्यों दूर रह फिर छल जाते हो तुम ?

मै एक टूटी कश्ती जिसका नहीं कोई मंजिल अब ,
फिर क्यों एक बार फिर जीवन के ख्वाब दिखाते तुम ?


मिलो के फासले पर भी रूह मै समाया है तुम्हारा हर अहसास
ये समझ कर भी क्यों तडपाते हो तुम ?

मेरे पास नहीं तुम्हारी तरह जीवन के ज्ञान का सागर
मेरे पास तो हैं बस दर्द की सरिता

मेरे मन के मानस क़हा खोजू तुम को
तुम्हारी विशालता का कोई आदि हैं अंत


क्या कभी खोज पाउगी तुमको ?
पा सकुगी तुमको नहीं मालुम
फिर भी दिवानो की तरह हर शब्द मै खोजती हूँ तुमको 
जानती हूँ ,कहो ना कहो मेरी तरह तुम भी हर पल खोज रहे हो मुझको तुम
केसे कहू  ?
मेरे हर अहसास मै हो तुम हां तुम

गुरुवार, 27 मई 2010

एक सपना और एक सच
बुनती ही आ रही थी आँखे एक सपना
हां ,एक सपना दुल्हन बनने का .
बनी भी दुल्हन ,पर जिन्दगी और समझोतों की दुल्हन
वो दिन ना मेरी आँखों मै ख़ुशी थी ,ना कोई उमंग
लगता था ,सरिता के प्रवाह मै ये भी एक टापू हैं |

सब कुछ तो जल गया था उसमे ,कही नहीं थी ,
मासूम सी चूडियो की खनक ,ना मेहंदी की खुशबु
सब कुछ होकर भी शून्य था |

शनिवार, 22 मई 2010

तलाश
मन ढूंढ़ रहा हैं कही तुम्हारे शब्दों को
अधूरे पड़े सवालो के जवाब देने वाले तुम क़हा हो ?
बैचेन हूँ मै , मेरी आत्मा
खामोशी से कही ना कही कुछ चल  रहा है रूहों मै
मै भी हूँ इससे बाबस्ता और तुम भी
फिर क्यों छिपे बेठे हो यूं  तुम पर्दों के पीछे ?
 जहा भी हो जवाब दो
मेरे शब्द तुम्हारे  शब्दों के अपनत्व को खोज रहे हैं
बिना किसी स्वार्थ के
बिना कुछ जाने ,पहचाने
इतना जानती हूँ रूह रूह को खोज रही हैं |

गुरुवार, 20 मई 2010

जब होती हूँ तनहा मै तब अक्सर साथ होते हो तुम
शांत बहती सरिता के साथ - साथ चल रही होती हूँ मै
और गुनगुना रही होती हूँ और तुम आकर अपने शब्दों से बाणों से
मुझको करदेते हो विचलित |
मै तुम्हारे साथ बैठ कर गुनगुना ना चाहती हूँ ,कभी ना हल होने वाली जीवन की पहेलियों को
मै जानती हूँ ,तुम मेरे हर अहसास को समझ सकते हो ,
और मेरी ही तरह बैचेन हो कही ,
मुझमे भी कही कुछ टूट रहा है पर सब कुछ समेट कर फिर भी सरिता के साथ बही जा रही हूँ मै
किस उलझन मै हो तुम ,नहीं मालुम
हां ,लेकिन बहुत करीब महसूस करती हूँ तुमको अपने जब तनहा होती हूँ
और जब भीड़ मै होती हूँ तो कही कुछ ढूंढ़ रही होती हूँ 
झूठे लगते है रिश्ते सारे ,स्वार्थ से भरे पड़े हैं सब यंहा
और मै खो जाती हूँ उसी तन्हाई मै जहा मै कभी तनहा नहीं होती
उम्र का अनुभव नहीं मेरे पास ,बस अहसासों की रूह तक समझ है
इसीलिए रूह बैचेन हैं कही रूह के लिए |

मंगलवार, 18 मई 2010

एक शाम गंगा के किनारे बेठे मै ढूंढ़ रही थी 
उसका अंत ?
क़हा है नहीं मालुम मुझको भी ,
हां लेकिन मै महसूस कर रही थी तुमको 
ढूंढ़ रही थी उसके निर्मल जल मै तुम्हारा अस्तित्व 

क़हा हो तुम मेरेमन ,मेरे अहसासों को रूह मै उतरकर 
समझने वाले "...................."
कही नहीं हो मेरे पास यंहा इस निर्मल जल के किनारे तुम 
इस पावन सरिता की तरह ही तो निर्मल है तुम्हरा मन 
फिर भी क्यों नहीं दिख रहा इस पवन जल मै तुम्हरा अस्तित्व |
सोचती हूँ जीवन का कोन सा सवेरा होगा 
जब इसी पावन गंगा के किनारे हम साथ होंगे और मै बड़ी शांत होकर 
तुम्हारे काँधे पे रखकर सर इस प्रवाह को तुम्हारी आँखों से महसूस कर रही हुंगी !

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

        बच्ची

एक भरे पुरे परिवार मै अपने एक बड़े भाई और छोटी बहन के साथ एक माध्यम वर्गीय परिवार मै रहने वाली लड़की रीन
पिता एक सरकारी कर्मचारी माँ एक साधरण घरेलू महिला|
.रीना अपनी उम्र के पच्चीस बसंत पार कर इन्तजार कर रही है अपने मन के सपनो के सोदागर का ,पर अभी जब भी कोई रिश्ता घर मै आता है माँ कहती है अभी तो रीना एम .बी ए करेगी अभी क़हा से शादी अभी तो हमारी बच्ची पद रही है साहब |
इसी तरह तेविस से पच्चीस सालगुजर गये ,अपने मन के आँगन मै वो सपने बुनती रही और माँ और पिता उसे पदाते रहे |
 धीरे धीरे उसके सपने दम तोड़ते रहे और वो लोक लाज और मरियादा मै बंधी कभी अपने माँ और पिता को कह ही नहीं सकी की मुझको शादी करनी है |
साथ की सहेलियां सुसराल जाती रही ,क्योकि रीना पड़ने मै बहुत अच्छी थी उसकी भावनाओं को कभी समझा ही नहीं गया |घंटो अकेले मै वो रोती रही ,उदास गीतों मै अपने सपनो को सोचती रही |

 किसी ने सोचा भी नहीं की अब बच्ची बड़ी हो गयी है और अब वो क्या चाहती हैं |उसकी हसरतो और अरमानो की कोई कीमत नही थीउसके माँ पिता के सामने |

आज एम .बी.ए का रिजल्ट आया और वो पास हो गयी |आज वो बेहद खुश थी क्योकि आज वो बड़ी होने वाली थी बेहद खुश
लहराते हुए अपने सपनो के सोदागर को बस अब अपने बेहद करीब ही महसूस कर रही थी ,आज सारी दुनिया उसके कदमो मै थी |घर  आकर उसने अपना परिणाम दिखाया ,तो माँ ने क़हा अब तो रीना की जाओं किसी भी बड़ी जगहलग जायेगी एक पल को रीना को लगा ,क्या माँ कभी ये महसूस नहीं करेगी की मै बड़ी होगी हूँ और अब सत्ताविस साल की भी ?


लेकिन रीना एक साधरण लड़की थी कभी कह ना सकी की वो क्या चाहती है ?माँ के आदेश के साथ हो जॉब के लिए आवेदन किया गया .और रीना को जॉब लग गयी |वही उसकी मुलाक़ात अपने साथ के सुनील से हुई ,दोनों नजदीक आनेलागे |
एक दिन दोनों ने एक दुसरे के सामने अपने मन की बातो का इजाहर किया |और तय हुआ की वो शादी करेगे एक दिन सुनील रीना के घर पहुचा और उसके माँ बाबा से बात की जवाब मिला अभी तो रीना बच्ची है वो शादी केसे करगी ,अभी तो उसकी छोटी बहन पद ही रही है ,भाई इंजिनयरिंग कर रहा है ......


.......................अभी तो रीना को नोकरी करना है |रीना सुनील के सामने बैठकर सब सुन रही थी ,बिना कुछ कहे वो अन्दर चली गयी और ऑफिस जाने के लिए तेयार होने लगी ...............................

जीवन चलता रहा रीना काम करती रही ,और अपने सपनो को सपनो मै ही देखतीही रही ..............क्योकि अभी तो रीना बच्ची है ,,,,,,,,,,,,,.?

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

सोचती हूँ कब तक जीती ही रहेगी  दुसरो के लिए औरत ,
कब अंत होगा उसके समर्पण का ?
कब लह लहा  उठंगे उसके सपने, आँखों  से बाहर आकर ?
अपनी आँखों को बंद किये क्यों इन्तजार करती हूँ सपनो के लह लहाने का ?
और सोचती हूँ
 इसी सब्र और इन्तजार का दुसरा नाम ईश्वर ने औरत रखा होगा 
हां ,बचपन से उम्र के आंखरी पल तक वो सपनो  के साथ ही दम तोड़ देती है ,
क्यों ?
हर बार ये सवाल मन को भेद जाता हैं ?
इतनी वेदनाये क्यों उसी के जीवन का हिस्सा  है?
इन ही सवालों से द्वंदों से लड़ते हुए आँख लग जाती है और फिर मै देखने लगती हूँ कभी ना पुरे होने वाला एक सपना |

एक आदत सी हो गयी है अपने सपनो से लड़ने की ,
हर बार टूटने के लिए ही मेरे सपने बने होते है
जानती हूँ ,पर फिर भी जीने की एक आस संजो लेती हूँ |
सोचरही हूँ कितना मुश्किल हो गया है न जीना
फिर भी इन के बहाने एक रास्ता निकाल लेती हूँ |
हर बार कोई न कोई कदमो मे आकर मांग ही लेता है कुर्बानी
मुझसे अपने सपनो की ,
माँ ,बेटी ,बहु या पत्नी बनकर भूलना ही होता होता है अपने सपनो को
कब तक चलती ही रहेगी ये अग्नि परिक्षाए |



















सोमवार, 29 मार्च 2010

एक ख्याल ही बन कर रहगए, तुम
मेरे सपनो के सोदागर 
आज भी तेरता है एक सपना मेरी आँखों मै 
तुम नहीं मिले मुझको ,इसलिए मेरे आँखों की नमी ने ज़िंदा रखा है उस सपनो से सोदागर को 
मेरी तेरती आँखों मै 
कहाँ हो तुम ?
आज भी इन्तजार है मेरी रूह मै बसने वाली सोलह साल की  दीवानी को तुम्हारा 
की तुम हर उसके हर अहसास को पद लोगे ,
समझ लोगे उसकी हर मुश्किल को 
तुम नहीं खेलोगे उसके अहसासों से ,
 क्योकि मेरे सपनो के सोदागर तुम तो पुरे इंसान होंगे ,
कब आओगे तुम? 
और मुझको मुक्त करोगे जीवन की इन विडम्बनाओ से 
अब तो आँखों की नमी भी कम होने लगी है 
और उसकी जगह आंसुओ ने ले ली हैं 
अब तो तुम बूंद बूंद बन कर इन आंखो से बहे जा रहे हो !
अब तो चले आओ 
कही ऐसा ना हो की ये नमी भी सुख जाए
सुखी सरिता की तरह
चले आओ अब तो मेरे सपनो के सोदागर 
   चले आओ |











          
तुम और तुम्हारी आहटे,
 मन के सारे दरवाजे खोल देती है 
और 
 जी उठती हूँ मै एक बार फिर ,
खिलखिलाकर मुस्कुरा देता है जीवन 
तुम्हारी आहटोको करीब पाकर .
मिलो के फासलों पे भी तुम्हारी खुशबू
मुझको विचलित कर देती है 
अच्छा ,बुरा साथ और दुरी इन सब से दूर आ चुकी हूँ मै ,
तुम्हारे साथ चलते चलते इस अनजान डगर पे
और 
अब कोई डर नहीं मुझको ,
क्योकि अब साथ हो तुम मेरे
याने खुद खुदा चला आया है मुझको थामने 
और 
मै बे खोफ बड़ चली हूँ तुम्हारी आहटो के करीब 
क्योकि मै जानती हूँ 
मेरे मन के मानस तुम ही दोगे मुझको अस्तित्व 
तुम्हारी पत्नी .प्रेमिका ,या मीरा का स्नेह नहीं मेरे मन मै 
मै तो एक खुली और साफ़ हवा के झोके की तरह 
तुम्हे अपनी  मुस्कुराहट  

देना चाहती हूँ ,सदा की तरह ही |







































सोमवार, 22 मार्च 2010

मेरे मन के मानस

ख्वाब हो तुम
मेरे मन के मानस
हकीकत की दुनिया से दूर तुम बसे हो ख्वाबो के गलियारों मै
हर पल महसूस करती हूँ मै तुम्हे अपने आँगन मै
चहल कदमी करते हुए ,अपने गमलो मै लगे पोधो के करीब |

हां मै सिमट जाना चाहती हूँ ,धरती की हरियाली मै
और रेगिस्तान के कांटो की चुभन मै
क्योकि मेरे लिए वो काटे भी तुम्हारे कोमल स्पर्श  की तरह ही है|

मेरे मन के मानस ,तुम बहुत ही सरल हो
बिलकुल इस धरती की तरह ही ,
तुम्हारे शब्दों मै वही ठंडी बयार की शीतलता है ,
जो जलते जीवन को शीतल कर देती है |

बहत करीब पाती हूँ तुमको मेरे मन के मानस
तुम्हारा हर शब्द ,सुबह की ताजगी और साँसों से भरा होता है |

जब मै बेठी होती हूँ अपने झूले पर
,तुम्हारा साया मेरे आँचल को छूकर मेरी साँसों मै कई तूफ़ान जगा देता है ,
और तुम खमोशी से अपनी ही दुनिया मै डूबे ,बाते करते हो इन हवाओ से ,
फूलो से और डालो पर बेठे पंछियों से |

मेरे मन का पंछी
दूर से ही तुम्हारे कदमो की आह्ट पाकर चहकता  रहता हैं |
क्योकि जानती हूँ मै एक ख्वाब हो तुम
मेरे मन के मानस |

शनिवार, 6 मार्च 2010

एक कविता तुम्हारे नाम
वो कहते है मुझसे की मुझ पर भी तुम  एक कविता लिखो
हां ,कविता हसी आती है मुझको उनकी इसी बात पर
कविता केसे कहू तुमपर ?,

तुम तो वो जलता दिया हो जिसकी रौशनी हु मै
जानती हूँ मै तुम्हारी ही रौशनी हूँ
और तुम ही तो हूँ वो जिसने खुद जलकर दिया है मुझको जीवन

क्या लिखू कविता अपने अस्तित्व पर ?
हां तुम्ही ने तो दिया है सरिता को अस्तित्व

तुम्ही ने तो दिया है एक सपना
सरिता को अपने सागर से मिलने का

हां तुम ही तो हो वो ज्ञान का सागर
जिसकी तलाश मै भटक रही है सरिता

हां तुम ही तो हो मेरी इच्छाओ का अनंत आकाश ,
मेरे ख्यालो की ताबीर

क्या लिखू कविता अपने ही अस्तित्व पर ?

फिर भी तुम कहते हो की मै तुम पर भी एक कविता लिखू !


क्या कहू तुमसे ?जब सामने होती हूँ तो शब्द को कमी हो जाती है
मेरे शब्द कोष मै ,और मै पागलो सी भटक जाती हूँ
अनजान डगर पर ,
और तुम अचानक ही ,  मुझको खीच लाते हो मजाक ही मजाक मै
एक हनी खाब की ताबीर की और.

वो सरिता के किनारे को तुम्हारा साथ
बड़ा अच्छा लगता है |
इस झूटी दुनिया से कही दूर सच का सामना करने की ताकत
देते है मुझको तुम्हारे ये शब्द
और तुम कहते हो की मै एक कविता तुम पर भी लिखू ?

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

हां तुम तो सदा जीवित हो मुझमे .
नाराज हो भले खुश हां तुम सदा मुझमे ज़िंदा हो मेरे साथ हो हां
बड़ा सुकून है आत्मा को
मन करता है बड़ के पेड़ की छाव मै सो जाऊ
शांत सदा के लिए तुम्हे अपनी आत्मा मै बसाये

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

ज्योतिष और ज्योतिषी
क्या है ज्योतिष ?सबकी अपनी परिभाषाये हैं | मै कोई बहुत बड़ी हस्ती हूँनहीं  की तर्क करने लगू|
लेकिन मेरी नजर मै आज का ज्योतिष सिर्फ बाजार और कमाई तक ही सिमित रह गया है ,आप कही भी चले जाओ आप ने जहा भी अपनी कोई बात रखी उसके समाधान मै आप को कोई जाप या कोई रत्न या फिर पूजा या किसी तरह का कोई विशेष दान बता दिया जाएगा |
सही है ना ,आप को बड़ा अजीब लगेगा लेकिन १९९० से लेकर आज तक मै जितने भी लोगो से मिली हूँ उसमे से मुजको आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसने ये क़हा हो की अमुक घटना, इस दिन, इस पल, इस षण तुम्हारे जीवन मै होगी |
और कई बड़े ज्ञानी भी मिले जिनके सामने दक्षिणा रखना चाहि तो क़हा गया ,की इस मदिर की दान पेटी मै डाल देना ,या किसी गरीब को भोजन करवा देना |
आज कल टीवी मै रोज सुबह तो ज्योतिषियों से ही होती है |मै ये समझ नहीं पा रही हम जितना पड़ते जारहे है हमारा दिमाग विकसित होता जा रहा है तो ,हम इतने ज्योतिषी गामी क्यों होते जारहे है ?
ज्योतिष एक मनोविज्ञान है की आप ऐसा करगे तो आप के साथ ये ठीक हो जाएगा | आप को कोई कहे तो आप करते है नहीं आप नहीं करते |
बाकायदा आप अपने दफ्तर से समय निकाल कर मदिर जायेगे |क्या ये ठीक है की कोई आप को कहे तो आप करेगे ?
नहीं ना ,तो फिर अपने जीवन को वेसा बिना ज्योतिषियों के बनाइये जिसा सुखद आप चाहते है |
जानना नहीं चाहेगे केसे ?
  1. सुबह कोशिश करे की आप जल्दी उठे |और सबसे पहले अपने दोनों हाथो की हथेलियों को आपस मै रगड़ कर अपने नेत्रों पर लगाए ,ऐसा आप तीन बार जरुर करे |<इससे आप अपने कर्मप्रधान हाथो मै बसे सभी देवताओं को नमन करेगे >
  2. आप के घर मै अगर कोई बड़ा,बुदा इंसान या माता ,पिता साथ हो तो उनका चरण स्पर्श करे ,और अपने बच्चो  कोभी सिखाये |
  3. आप जिस किसी धर्म  को मानते हो अपने गुरु का नाम सुबह मन से लेते रहे .साथ मै अपना काम भी चलते रहने दे |
  4. घर मै कम से कम किचन का सुबह सुबह झाड़ू जरुर लगाए ,बाकी आप बाई के लिए छोड़ दे |
  5. अगर आप सुबह की चाय बनाने के लिए गेस ओन करके चाय बना रही है तो दो छीटे अग्नि देव के नाम से जरुर अग्नि को समर्पित करे |
ऐसी कई छोटी बात है जिनसे ज्योतिषियों का खर्चा आप जरुर बचा सकेगे और स्वस्थ और सुखी रहेगे |

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

वो जो है मेरी जिन्दगी





वो जो है मेरी जिन्दगी
अपने अश्कों को छुपा कर मुस्कुरा लेती है ,
वो मुझको तसल्ली दे कर बहला लेती है |
बड़ जाता है दर्द जब हद से ज्यादा ,
वो अपने लबो पे नगमे सजा लेती है |
खो ना जाऊ मै कही दुनिया की भीड़ मै
वो मुझको अपनी जुल्फों मै छुपा लेती है |
यूँ सरे आम मिलने से हो ना जाये कही रुसवाई ,
वो चुपके से करके इशारा मुझे सपनो मै बुला लेती है |
दुनिया मै हर इंसान भगवान की दुहाई देता है पर क्या किसी ने देखा है उस भगवान को ?
 नहीं ना दर्द की अनुभति ही किसी के साथ होने का एहसास कराती है ,और हम कह उठते है ये हर बार मेरे साथ ही क्यों होता है भगवान ,याने हम हर पल किसी ना किसी शक्ति को अपने साथ होने पर भी सिर्फ दुःख मै उसकी सत्यता को स्वीकार करते है |
तो क्या आप ने नहीं देखा कभी भगवान को ?
एक दिन अचानक नेट पर कुछ पद ही रही थी किसी का कोई लेख ,एक कमेन्ट लिखा  था ,लाइफ का पहला नेट कमेन्ट जिसने जीवन की दशा ही बदल दी |
मुझको अचानक एक फरिश्ता आ मिला ,ये जान कर लगता है आज भी इस संसार मै राम का वास है ,हां भगवान हमारे साथ ही यही इसी दुनिया मै हर पल साथ रहते है ,बस हम पहचान नहीं पाते और राम हमसे मिलकर भी चले जाते है  |
मै धन्य हूँ की मेरे राम मेरी आत्मा मै मेरे साथ है |
इसीलिए कहती हूँ अपने गुरु अपने राम को आप भी ढूंड निकालिए .पहचानिए कही आप के राम आप के आस पास तो नहीं !
पूछे लोग गुरु बिना क्या मिले ज्ञान ?
कहू कैसे आप को श्रीमान पहले गुरु बना ले किसो को ,फिर मान अपना उद्धार .
ना होता ऐसा कुछ तो राम करते ना अहिल्या उद्धार ,ना होता एकलव्य महान|

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

जीवन के हर मोड़ पे यूँ ही चले आना तुम मुझको थामने मेरे राम
कभी खुली हवा सी बहती हूँ मै ,तो कभी अपने को हजारो बेडियो मै बंधा पाती हूँ|
सोचती हूँ तोड़ सारी बेडियो को मै ,निकल जाउ  अनजान किसी डगर पे
पर अहसानों के तले दबा है जीवन ना जाने कितने तुम्हारे राम|
हर पल अंधड़ सा बह रहा है तन मन मै जीवन तुम्हारे नाम से
मोह ,प्यास ,बैर ,प्रीति सब कुछ दूर जारहा इस आत्मा से
भीड़ से शून्य की और क्यों बह रहा जीवन तुम ही बता दो राम
सोचती हूँ कही कायर तो नहीं ?
फिर क्यों आत्मा खीच रही विरानो को .]
जीवन के हर मोड़ पे मुक्ति का मार्ग बताने यु ही चले आना मेरे राम |

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

मेरे राम

निशब्द निशा मै है मन विचलित ,दुंद रहा मन राम, राम

तन, मन सब कुछ राम राम ,

साकार ब्रह्म ,साकार रूप है राम

रग ,रग मै बसे राम ,घट घट मै बसे राम

चहु और बसे कण कण मै बसे राम

राम , राम ,राम

मन की आस बस राम तन का अंत बस राम

तुम ही हो मेरे उद्धार करता , मेरे राम

पाऊ जो जीवन मै दर्शन तुहार

तो धो डालू अशरुओ से चरण तुहार

कब मिलगा ,फल मेरी भक्ति का ,

इस आस मै जीवन रही गुजार

कभी तो इस धरती पे भी तुमको आना होगा एक बार फिर

साकार कर जाना होगा ,जीवन मै भक्तो का उद्धार

मेरे रोम रोम मै बसे भगवान मेरे राम

तुम्हरे दर्श बिन सूना जीवन ,सुनी पड़ी दुनिया मेरी

तोड़ निशब्द निशा को आजा एक बार

देजाओ जीवन मै आशीष ,एक बार फिर

जाओ मेरे राम

जाओ मेरे राम |

सोमवार, 25 जनवरी 2010

सरिता का मोक्ष


बह रही है सरिता अपनी ही धाराओ ,मै सब कुछ छोड़ कर
जीवन के सारे बन्धनों को तोड़ कर
हां सरिता का प्रवाह समय के साथ साथ बहुत तेज हो रहा है
उसे जल्दी है सागर मै अपना अस्तित्व खोने की
फिर भी उसे रास्ते मै आये कई पहाड़ो से सीखना है जीवन के जड़त्व को
और रोकना नहीं है अपना वेग
और जो समय से आगे चले वो सरिता अपने साथ उठा ना दे कोई बाद
हां डरती हूँ कही वो गंगा से कोसी ना बन जाए
और बहा ना ले जाए अपने साथ जुड़े कई सपने
हां ,आज भाग्य से तुम आमिले हो सागर की कही तुम्हारी ही आस मै भटक रही थी
अपनी विशाल धाराओ मै सरिता
तुमने सामने आकर आज थाम लिया उसकी प्रचंड लहरों को
की थमो तुम्हारी मंजिल ये नहीं ,
तुम रोहिणी हो तुमको तो अभी और उचाईयो पर जाना है
अपने वेग को शांत करो ,जीवन धारो को दो एक नया आयाम
हां शांत करो इस वेग को ,नहीं तो ये तुम्हारे साथ ना जाने कितनी बस्तियों को उजाड़ देगा
हां इस सागर के मिलन के बिना अधूरी है सरिता
सरिता को अपनी पहचान देने वाले सागर तुम मानो ना मानो सरिता तुम्हारा इस अंश अपने मै समेटे बह रही है जीवन की इन गहरी जल धाराओ मै ,इसी प्रतीक्षा मै कभी तो सागर से होगा उसका अंतिम मिलन
वही तो होगा सरिता का मोक्ष

रविवार, 24 जनवरी 2010

एक सपना खुली आँखों का


मै भी देखती एक सपना खुली आँखों से,
की वो मोड़ एक बार फिर आजाये ,
हां उस रात की तरह सजी हु मै
नयी दुल्हन की तरह और तुम साथ हो मेरे
पास हो बहुत फिर भी अहसासों से दूर नजर आते हो ,
इसलिए देनी पड़ी है शब्दों को जुबा
उसी महकती रात की तरह मै बन जाना चाहती हूँ नयी दुल्हन
मेहँदी के खुशबु वाले महकते हाथ और महकते मोगरे मै
एक बार फिर महक जाना चाहती हूँ मै ,
सूर्ख रंग मै रंगी हुए
,अपने आप मै जीवन के सारे रंगों को समेटे हुए एक बार फिर ...............
आँखे बंद करती हूँ तो खो जाती हु
वही घंटो तुम्हारे काँधे पे सर रखे तुम्हे सुनते हुए
कितना ,खुबसूरत है था ना वो पल ,
सब कुछ मन की कही फिर भी उन अनकही सी
गुनागुना रही हूँ मै,
उन पलों को सुनहरी धुप मै नदी के किसी किनारे तुम्हारे साथ
हां मेहंदी लगे हाथो मै ,हां तुम्हारे हाथो मै हाथ ।
पहले कभी कह नहीं पायी ,हां घूँघट उठाने से पहले की मुह दिखाई मांगना चाहती हूँ आज तुमसे आज ,
सब कुछ है पर सुनी पड़ी है कदमो की आहटे
इसीलिए छम -छम करती पायलों केसाथसब कुछ खनकता हुआ महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारे साथ
हां इसीलिए मांगना चाहती हूँ पायले,
एक बार फिर बन जान चाहती हूँ दुल्हन तुम्हारे साथ
तुम तो सब कुछ भुलाए बैठे हो ,तो फिर क्यों ?
ना गुन्गुनालू ये पल दोबारा तुम्हारे साथ
सरिता -सागर

सपना

मन को लागे नए पर ,दूर तक उड़ने को
जो चाहा वो मिल गया सनम
फिर क्यों दिल कहे तेरे काँधे पे बैठ जाने को
ऐसा लगे की बरस रहा प्यार तेरा ,अंखियों से
झगड़ रहा अधिकार तेरा फिर भी ,
किसको मानु अपना तुझको जो सोप गया जीवन
उसको जो आज जता रहा अधिकार अपना
कोई नहीं अपना जानती हूँ
सच हो नहीं सकता सपना .सपने पुरे करने के लिए जिगर चाहिए
और वो होसला जो सिर्फ तुम्हारे पास है हां जी ,जो सिर्फ मेरे साथ है

बुधवार, 20 जनवरी 2010

सरस्वती और बसंती बाई

आज जनम दिन है मेरी दादी बंसतबाई का
हां ,और आज जनम दिन है सरस्वती का उस सरस्वती का जो कही पूरी नहीं हो सकी !
हर तरफ लोग पहन रहे बसंती रंग ,आज रंगा हर कोई इसी बसंत के रंग मै
फिर क्यों या याद रही है मुझको बसंती बाई{जीजा}
हां वो इतनी बुदी महिला ही थी जिसने स्वीकार किया था अपने पोते का ये प्रेम विवाह
हां बहुत अलग थी वो रुदिवादी विचारधाराओ से ,वो करवाना चाहती थी नोकरी मुझसे
बनवाना चाहती थी अपने पोते का घर ,आँगन
हां आज तुम्हारे ही रूप मै जनम हुआ था सरस्वती का |
हां ,सरस्वती कभी पूरी नहीं होती ,क्योकि वो इसीतरह जनम लेती रहती है कभी .माँ तो कभी दादी बनकर
तुम्हारे रूप मै ।
तुम युही अपने आशीर्वाद के साथ हम्रारे दिलो मै निवास करती रहोगी ,औरदेती रहोगी ज्ञान और सोभाग्य
आशीष सदा ,
हां तुम्हारा ही तो रूप है आज की सरस्वती
हां तुम अशिश्ती रहो युही सदा ,दादी बनकर तो कभी माँ बनकर



मंगलवार, 19 जनवरी 2010

GHUTAN: माँ

GHUTAN: माँ

माँ

क्या होती है माँ ?
नहीं पता मुझको ,क्योकि मै बन नहीं सकी कभी माँ
हां अपनी माँ के साकार रूप को देखा है मेने ,
इसीलिए ही शायद मन अपने स्त्री होने के अपने अस्तित्व को खोज रहा है
मुझको याद है उसका अलसुबह उठ जाना ,हमारे लिए तैयारी करना
कितना प्यार गुंधा होता था ,उन मैथी के पराठो मै ?
हां ,अब मुझको पल पल याद आता है जब मै नहीं बन सकी हु एक माँ
माँ के सपनो के आँगन से तो मै निकल आई हु यतार्थ जीवन मै
और हां बन नहीं सकी हु माँ
हां माँ कभी मै रो नहीं सकी तुम्हारी गोद मै सर रखे ,किस्मत से शिकायत किये की मै नहीं बन सकी हु माँ
जानती हु मै जब तुम देखती हो मुझको किसी खिलोने से खेलते हुए तो क्या सोच रही होती हो ?
और होले से एक आवाज लगाकर कहती हो ,अरे क्या बचपना है ये !
मै जानती हु ,तुम कभी मेरे असीम दर्द का कोई अहसास मुझको नहीं कराना चाहती |
इसीलिए मुझको एक हलकी सी आह्ट से ही खीच लेती हो ,अपने आँचल मै
सच कहू तुमको पाकर सारे दर्द भूल जाती हु और बन जाना चाहती हु एक बार फिर वही छोटी सी तुम्हारी बेटी
हां तुम्हारा ह्रदय बड़ा विशाल है की तुमहंस कर छिपा देती हो या कभी डांट कर
मुझको पता है एक किसान तभी खुश होता है जब उसकी बचाई बिजवारी भी उसको भरपुर फसल देती है |
पत्थर पूजते पूजते भी अब हार गयी हु माँ ,
इसीलिए भाग जाना चाहती हु ,इस दुनिया से दूर छीप जाना चाहती हूँ तुम्हारे आँचल मै
हां इसीलिए की कभी ना बन सकुगी माँ |



पत्थर का मसीहा




श्रद्धा से पूजे कोई" पत्थर" तो वो भी बन जाए खुदा ,
हम तो पूजे पत्थर ,वो पत्थर जो बन बैठा है मसीहा

कहते रहे लोग विशवास नहीं करना 
और हम लगाये बैठे है आस एक पत्थर से

ये विशवास ही तो है मेरा राम के पूज रहा मन एक पत्थर
जानता है मन एक दिन तो पत्थर भी जाग उठेगा मेरी करुणपुकार से,

और भर देगा मेरा आँचल अपने दुलार से ,
हां सब कुछ श्रद्धा और विशवास का ही तो खेल है ये

कि मान बैठा है एक पत्थर को मसीहा
हां वो पत्थर का मसीहा कभी तो देखेगा 

,प्यार भरी निगाहों से मेरे खाली आँचल को भी ,
और देगा जीवन को नया नाम ,और नया रूप

हां कभी तो वो पत्थर भी बन जाएगा मेरे लिए" पत्थर का मसीहा "|

सोमवार, 18 जनवरी 2010

कुछ नहीं पता



हम तुमको चाहे या ना चाहे ये खुद हमको भी पता नहीं
ये सिलसिला क्यों है खुद नहीं पता
तुझमे दुन्दते है खुदा हमको मिलेगा या नहीं हमको नहीं पता
फिर भी बेबस से घूमते है हम तेरा नाम दिल से लगाए क्यों ?
ये खुद भी नहीं पता |
क्यों कर बैठा है दिल ये खता खुद हमको भी नहीं पता ?
तेरी बंदगी मै है जो मजा ,वो खुद तुझको भी नहीं पता ।
श्रद्धा का अर्थ जाना है जीवन से ,साकार रूप पाया तुममे ,
सब कुछ क़हा फिर भी बहुत कुछ क़हा अनकहा ,क्यों?
ये खुद मुझको भी नहीं पता ।
क्या,तलाशता है तुझमे दिल खुद मुझको भी नहीं पता ?
सोचा नहीं था ,ये मोड़ भी आयेगा ,की तुम साथ होंगे तो जी उठेगा फिर मन
खिल उठा है मन का रोम रोम खिली खिली धुप की तरह
तुम चाँद हो या सूरज खुद मुझको भी नहीं पता ?
हां सुनहली धुप हो या ठंडी चांदनी खुद खिल उठी जिन्दगी को भी नहीं पता ?
या सब कुछ सामने है फिर भी मुझको कुछ नहीं पता ?
की क्या है ये ?
सजा या खता ?







जीवन और तुम

तुम और ये जीवन दोनों एक दुसरे के पूरक हैं
तुम बिन जीवन नहीं ,तुम बिन मै नहीं
मेने पाया है तुममे वो पूरा इंसान जो मुझको कही पति नहीं नजर आया ,
मेरे शब्दों को तुमने ही दिया है साकार रूप ,
और जीवन जीवन को दिया है सार्थकता का साथ
हां तुम ,वो धीरज ही तो हो ,जिसके बिना जीवन का कोई मोल नहीं
कभी कह नहीं पाती वो हजारो बाते तुमको जो पग पग देती है मेरा साथ
और तुमको समझा नहीं पाती ,अपनी घुटन
मुझको तलाश है आध्यात्म की ।
और तुम्हारे स्नेह ने बना रखा है मुझको अपने काँधे की चिड़िया
तुमने ही दिया है जीवन को अनंत सोच का आकाश
फिर क्यों अपने काँधे पे ही बिठाये रखना चाहते हो अपनी इस चिड़िया को ?
तीसरी फ़ैल कहते कहते ,तुमने मुझको ला खड़ा किया है जीवनको पी एच डी के सामने
क्यों ,डरता है तुम्हारा असीम स्नेह की कही धारण ना करलू कोई भगवा ?
नहीं ,मेने तुम्हारे रंग का भगवा धारण किया है और अब मै शायद इस जन्म मै और किसी रंग मै ना रंग सकू|

कैसे समझाऊ तुमको ?
जीवन की ये धारा अब जिस और मुड़ चली है वो अब किसी बंधन मै बंधा नहीं है|
वो मुक्त है ,अनंत आकाश का राहू है ,जो पाना नहीं,देना चाहता हैं |
अपना जीवन समर्पित करना चाहता है दुखियों की सेवा के नाम

क्यों समझा नहीं पारही ये घुटन तुमको ?
शायद इसीलिए की तुम और जीवन एक दुसरे के पूरक हो !


रविवार, 17 जनवरी 2010

सितारों से वास्ता

जो जानता है ,सूरज और चाँद तक उसकी पहुँच नहीं होगी ,
वो रखता है सितारों से वास्ता
कभी मानता है हनुमान जी को ,
तो कभी शनि मंदिर गुहार लगाता
क्या मंदिरों मंदिरों भटकने से बदल जायेगी तक़दीर ?
हां ,अगर ऐसा ही कुछ होता तो शायद तो राम को कभी ना होता वनवास
और वैदेही यु हरी ना जाती ,
रावन जेसा महाज्ञानी ,सबसे बड़ा शिव भक्त ,क्यों ?
ना बदल सका अपनी तक़दीर
जो तय है ,वो अब बदला नहीं जासकता
उसमे कुछ सुधार किया जासकता है बस
चाहो तो तुम सुधार लो अपने सितारे या कह लो अपनी तक़दीर
मंदिरों मै नहीं बस्ता आज का भगवान्
वो तुम्हे मिल जाएगा किसी चाय की होटल पर अपने नन्हे हाथोसे कप प्लेट धोता
,कही किसी कोने मै तुम्हारी झूठन उठाते ,
उसे पूजो ,उसको प्रसाद चदाओ ,उसे अपनाओ
बदल जाएगी तकदीरे ।
बदलना है तकदीरों को तो बदलो अपने घरो मै दिन भर तुम्हारे लिए पसीना बहाती ,कभी ना शिकायत करने वाली तुम्हारी माँ.या पत्नी की तक़दीर
बहुत कुछ है बदलने को अभी बाकी ,
हां बस एक बार शुरुवात तो करो ,हां किसी मंदिर से नहीं
अपने ही उस घर से जहां तुमने अपनी पिता को रूद्र का अवतार नहीं माना
और कभी माँ को कभी शक्ति समझ कर नहीं पूजा
जहा पग ,पग किया तुमनेशक्ति के रूप मै आई अपनी पत्नी का अपमान
सुधारना है सितारों को तो ,शुरुवात अपने घर अपने सबसे बड़े तीर्थ से करो ।
हां यकीं है मुझको बदल जाएगे सितारे तुम्हारे
और तुम टाटा ,बिरला ना सही एक खुबसूरत जीवन के मालिक जरुर बन जाओगे |
वो खूब सूरत जीवन जो शायद टाटा ,बिरला और अम्बानी के पास भी नहीं
पाजाओगे वो असीम शान्ति ,सुकून और चैन ,जिसके लिए दुनिया हिल स्टेशनों पे भटकती है
हां .जो जानता है सूरज और चाँद उसकी पहुच नहीं होगी ,
वो रखता है सितारों से वास्ता|
सरिता



शनिवार, 16 जनवरी 2010

सितारे

जीवन मै किसका कब तक ,क़हा तक साथ है ये तय किया है विधाता ने ,
हम तो सितारों के हाथ की कठपुतली है मात्र ,
ये हमको पता है ,तो फिर क्यों घबरा जाते हो तुम इन सितारों के बदलने से
सरिता कभी रस्ते नहीं बदला करती ,उसका रास्ता कठिन है
पर फिर भी वो बेताब है सागर से मिलने को ।
उसका जीवन इसी साँस के साथ बंधा है ,की उसको सागर से मिलना है ।
उसके रास्ते मै अभी तो कई मोड़ आने वाले है पर मेरे सागर तुम मत घबराना
क्योकि सरिता लक्ष्य हिन् है तुम्हारे मिलन केबिना |
ये जीवन की परिणिति है ,की जो सबको आसानी से मिल जाए वो किसी एक के लिए अमूल्य होता है |
मेरे सागर तुम तो अमूल्य हो ,क्योकि तुम्हारी कीमत सरिता ही जानती है ,
और तुम सरिता का प्रारंभ भी तुम्हारे ही जल के जमने से हुआ है और उसका अंत भी तुममे विलीन होना ही है |
मुझको मेरा अस्तित्व देने वाले ,इस अंत हिन् जीवन के तुम ही तो सच्चे साथी हो ।
बाकी तो सब वासनाओं से भरे ,स्वार्थ के पुजारी है |
ओ सरिता ओ सरिता ,ये पुकार है सागर की
तो फिर क्यों दोडी नहीं आयगी सरिता तुम्हारी इस पुकार पे |
सूना है किसी से की समझदार सितारों पे हुकूमत करते है तो काहे विशवास नहीं करते सागर तुम ?
सितारों ने तय किया है सागर -सरिता का ये अद्भुत मिलन
तो क्यों घबराते हो इस मिलन से तुम |

कसूर

घुटती हुई एक लड़की ने हाथ ही तो बढाया था तुम्हारी तरफ विशवास का
अनोखे थे ,सितारे तुम्हारे शायद ये सोचकर
लेकिन तुम कभी समझ ही नहीं सके उसके मन की गहराई
और तुमने तोल दिया वासना और धन की चाहत से ,
आत्मा की गहराई को ,
शायद एक नादान कर बैठी थी
तुम पे विशवास करने की खता
सोचा था तुम भीड़ से जुदा हो ,गहरे हो तुम
पर तुम तो मुझसे भी कमजोर थे
हां कसूर क्या था उसका ?जिसने पूज लिया था तुमको ,उसका ?
क्या श्रद्धा ,समर्पण और विशवास का यही सिला है ?
अगर है तो ये मेरा कसूर है के एक नादान बड़ा बैठी विशवास का हाथ तुम्हारे साथ
अपनी ही निगाहों मै छोटे साबित कर दिए है तुमने श्रद्धा औरनिस्वार्थ स्नेह जैसे शब्द
एक पल मै झुका दिया है फरिश्तो के सामने मेरा मस्तक
किनसे शर्मिन्दा हु ,सोच रही हु तुम से ,या अपने आप से
शायद यही कसूर था उस नादान लड़की का जो बड़ा बैठी तुम्हारी तरफ विशवास का हाथ
कभी ना सिख पाने वाला पाठ पड़ा दिया तुमने उस नादान लड़की को
हां ये ही था कसूर उसका ,की उसने तुमको खुदा माना |

तेरी तलाश

निकला था तेरी तलाश में भटकता ही रहा हुआ जो सामना एक दिन आईने से , पता चला तू तो ,कूचा ए दिल में कब से बस रहा ................